Manav shok (मानव शोक)

कभी कभी कुछ हो जाता है ,

पल में रंग बदल जाता है।

कुछ धूमिल यादों का किस्सा,

जीवन में संघ रह जाता है।

कोई जानता है, ना मानता है,

गलती पर गलती कर जाता है।

किन्तु किन्हीं लम्हों में तन्हा,

कोई कोई मानव शोक मनाता है।

कुछ ज्ञानी है, कुछ अज्ञानी,

कुछ खुद में ही संज्ञानी है।

कुछ कार्य बड़े कर जाते है।

कोई करता बस नादानी है।

अब किसमे कितनी कमियां है,

हर कोई आज बताता है।

किन्तु किन्हीं लम्हों में तन्हा,

कोई कोई मानव शोक मनाता है।


सबका, अपना अपना विचार है।

करता, वैसा ही व्यवहार है।

हर कोई व्यस्त है जीवन में,

जिसके जीवन का, जैसा आधार है।

जिसके जैसे कर्म है रहते,

खुद, वैसा ही फल पाता है।

किन्तु किन्हीं लम्हों में तन्हा,

कोई कोई मानव शोक मनाता है|


- ✍आलोक कुशवाहा

Alok kushwaha

मै कोई कवि तो नहीं, जो दिल में आता है कागज पर उतार देता हूं।। Poem by heart �� .

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