बात खत्म ?

 बात खत्म ?




चंद लम्हे संघ गुजारे भी तो क्या,
उसकी वफाएं साथ नही तो बात खत्म।

अधूरी रह गई हर ख्वाहिश, हर ख्वाब बिखर गया,
कुछ कहा भी नहीं, कुछ सुना भी नहीं, और बात खत्म।

आज फिर वही पुराना सिलसिला जो अधूरा रहा,
पूछते रहे वजह, पर जवाब मिला नही तो बात खत्म।

मेरी खामोशियों की गहराई में छुपा है कितना दर्द,
बयां करने को कोई साथ नहीं, तो बात खत्म।

दिल के करीब रहता है उसका साया, खैर छोड़ो,
अब उसके बिना ही गुजरना है जीवन तो बात खत्म।

मेरी खुशियों की किताब का आखिरी पन्ना वही था,
अब वो नही तो खुशी कैसी, बस बात खत्म।

तड़पाती है उसकी यादें, बहुत रुलाती है,
चाहत है कि मर जाऊं किसी दिन और बात खत्म।

- आलोक कुशवाहा
Alok kushwaha

मै कोई कवि तो नहीं, जो दिल में आता है कागज पर उतार देता हूं।। Poem by heart �� .

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