आंखों में सपने लिए क्यूं चल रहा हुं मै !!

 आंखों में सपने लिए क्यूं चल रहा हुं मै !!


एक दिन अचानक, आया एक ख्याल मुझे,
ना समझ आ रहा पूछूं ये सवाल मुझे,
कुछ छड़ सोचा, फिर खुद से ही पूछ लिया,
इन आंखों में सपने लिए क्यूं चल रहा हुं मै!!!


मन चिंतित हुआ, आखें भर आईं मेरी,
ये प्रश्न था? या कहानी थी मेरी,
फिर सोचा, ये एक ख्याल ही तो है,
एक छोटा सा सवाल ही तो है।
पर दिल से फिर यही आवाज आई,
इन आंखों में सपने लिए क्यूं चल रहा हुं मै।।


अब बेचैनी बढ़नी लगी, खामोशी भी कहने लगी,
जज़्बात तुम्हारे कहा गए, वो ख़्वाब तुम्हारे कहां गए,
जिसमे देखे थे सपने वो हालात तुम्हारे कहां गए।
मन चिंतित हुआ, मै अचंभित हुआ,
आखिर आंखों में सपने लिए क्यूं चल रहा हूं मैं।।


यूं एकांत में बैठा तो मैं मौन था,
पर जहन में बड़ा ही शोर था।
यूंही कुछ पल बीत गए, वो प्रहर फिर गुजर गया।
दिन की संध्या के संघ, वो दिन भी ढल गया।।
पर वो ख्याल मुझे काटों की तरह चुभ गया,
यूं बिन राह कैसे पग पग बढ़ रहा हूं मैं,
आखिर आंखों में सपने लिए क्यूं चल रहा हूं मैं।।


__अलोक कुशवाहा
Alok kushwaha

मै कोई कवि तो नहीं, जो दिल में आता है कागज पर उतार देता हूं।। Poem by heart �� .

7 Comments

Have any opinion, doubt. Let me know.....

Previous Post Next Post